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Shubhshree mathur

बक- बक

वो बोला

मेरी बक- बक उसको याद आती


जैसे मैदान मैं किसी ने पानी छोड़ा हो

खिलखिलाता .... बहता हुआ

ओर वो मिट्टी बनकर सब पी जाता


ऐसा नहीं की अब है नहीं कुछ बताने को


बस उम्र बढ़ गयी जाड़े के जैसे

एक को बर्फ़ दुसरे को पत्थर कर दिया

दोनों को ही सख़्त कर दिया


तो ऐसा नहीं की कुछ है नहीं बताने को

शायद कुछ है छुपाने को


पर चिंता मत करो

मौसम बदलेगा

कोहरा भी हट्ट जाएगा


फिर बहेगी...

मेरी बक बक खुले पानी की तरह...

क्या तुम पी लोगे फिर से मिट्टी की तरह?

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